Wingword Poetry Competition 2025 – Page 108 – Delhi Poetry Slam

Wingword Poetry Competition 2025

Welcome to the community blog of DelSlam. Here you can read about the work we do and the poets we support. Share your thoughts in the comments section.

तन्हा

तन्हा

By Dr Poojan Purohit

इस इज़दिहाम में तन्हा है ये ‘नवाज़िश’
मुखातिब है ये मासूम ज़हीन हुजूम से, है फ़ितरत की साज़िश।  

जिनको तू अपना कहता है।

जिनको तू अपना कहता है।

By Mohit Negi Muntazir

कविता -
जिनको तू अपना कहता है 

नजरिया

नजरिया

By Ritesh Misra

मेरी मिसाल छोड़िए दुनिया की देखिए
खैर ख्वाहों में ही कातिल छिपे हुए

दस्तूर दुनिया का

दस्तूर दुनिया का

By Ramesh Prasad

ईद उनकी, क्रिसमस उनका और उन्ही की होली है।
ख़ुदाई उनकी ही है, जिनकी लाठी है, जिनकी गोली है।

पिताजी (मुक्तछंद)

पिताजी (मुक्तछंद)

By Babulal Sankhla Saini Babu

मैनें बन पिता पहचाना
पिता के दर्द को।

जिंदगी की अहमियत

जिंदगी की अहमियत

By Ajita Bansal

जिंदगी को हमेशा उसने ही जिया है,
जिसने बंदिशे देखी हो खुद के ऊपर|

पुष्प की कथा

पुष्प की कथा

By Dr. Sulagna Bhowmick

पुष्प तुम सुन्दर हो 
वर्ण विपुल सुगंधमय
तुम्हारे सौम्य स्वरूप से

पिता की मौन डायरी से

पिता की मौन डायरी से

By Sanjeev Kashyup

वो आए फिर कल रात, 
ऊंघती आंखों के आइने में

नारी शक्ति

नारी शक्ति

By Prashant Mahato

एक ज्वार सा उठने लगा अब,
भृकुटियाँ सबने तानी है,

जिस्म की ये आख़री यादें

जिस्म की ये आख़री यादें

By Vedant Bhardwaj

जब ये जिस्म आया आया था,
तब हुई थी ख़ुशियों की बात,
जब ये जिस्म गया तो हुई आँसुओं की बरसात।

पहलगाम

पहलगाम

By Kamal Khanagwal

क्या सोचता है तू कि तुझे जन्नत नसीब होगी
नासमझ तू ये सोच कि तेरी मय्यत भी कैसी होगी,

बारिश

बारिश

By Chetna 

बारिश, तुम अगर शहर चुनो तो इस बार उसके शहर जाना!!

बादलों को देख वो इतराएगी, शरमाएगी, दिखाएगी खुशी;

यकींन

यकींन

By Poonam Jagtap 

यकींन!! उसका सफर आसान नहीं होता, 
जो करे अपने आप पर वो कभी नाकामीयाब नहीं होता ! 

रूप के दर्जी इंसान बनो

रूप के दर्जी इंसान बनो

By Janhavi Verma

रंगीन जग को रंगों की कदर सीखा न पाया,
सावले रंग को जग ने खामी ठहराया,

मैं जितनी बड़ी हो रही हूं

मैं जितनी बड़ी हो रही हूं

By Purba Banerjee

मैं जितनी बड़ी हो रही हूं
मेरी सोच उतनी छोटी हो रही है।

बारिश

बारिश

By Dr Manu 

धरती की ये तपिश मिट जाएगी
फूलों की कलियाँ भी खिल जाएँगी 

भेद क्यों ?

भेद क्यों ?

By Ayushi Singh Baghel

रंग एक, ढंग एक
चाल एक, चलन एक
एक रूप, रेखा एक
भेद कहाँ ?

बेदाग़

बेदाग़

By Jinal Shah

राहों से पूछ लेना कि मंज़िल कौन सी है, ’गर कोई तख्ती ना मिले तो।

मंजिल की तलाश

मंजिल की तलाश

By Shubham Singh

मुश्किल राह पर चलने की मैंने थी ठानी,
राज तिलक की थी तैयारी|

मैं पागल हूँ

मैं पागल हूँ

By Aqdas Mujtaba

अचानक ख़याल आता है मुझे एक रात
आसमानों में से कौन है जो मुझे देखता है
ऐसी हसरत भरी आँखों से

बचपन की यादें

बचपन की यादें

By Harshendra Thakur

मेरा रोना भी एक कविता था। 
मेरी किलकारी मे था एक गाना।

मैं सुनता हूँ तुझे..

मैं सुनता हूँ तुझे..

By Kunal Khatri

शिक़ायत है!
चल आ बैठ मैं सुनता हूँ तुझे..

प्रिये

प्रिये

By Rajesh Singh Bisht

मैं... कह दूँ क्या कहानी प्रिये,
चल दूँ क्या... साथ प्रिये?

मैंने माँ के चरणों में भगवान को देखा है

मैंने माँ के चरणों में भगवान को देखा है

By Abhishek Pandeyar

मैंने अपनी माँ के चरणों में भगवान को देखा है
अपने सपनों को उसकी आँखों में खिलते सदाबहार देखा है

मेरे घर के पास का चौराहा (कोविड के टाइम)

मेरे घर के पास का चौराहा (कोविड के टाइम)

By Nadia Makharia

गाड़ियों की आवाज़ों से
शाम को तो चटखारों से

बचपन का कारवां

बचपन का कारवां

By Priyanka Dixit

बचपन की वो मीठी बातें,
चंचल सी सुबहें, सुकून की वो रातें।

बेटियाँ

बेटियाँ

By Vinay Bhandari 

जिस घर लक्ष्मी जी आती है
वो बेटी होती है।

बात यहाँ ,उसकी ही हो रही है जो..

बात यहाँ ,उसकी ही हो रही है जो..

By Deepti Sharma

मान, सम्मान से मिलवाने वाला अपना ,मान ढूँढता है |

मन की बात

मन की बात

By Mannaa Bahadur

जो बोले ना, ख़ामोश रहे,
उसके मन में भी बातें हैं।

माँ तू भी जी ले

माँ तू भी जी ले

By Vijeta Pachpor

बचपन में जो बंधन लगते थे 
आज वो बंधनों को जीना चाहती हूँ माँ