By Harshendra Thakur

मेरा रोना भी एक कविता था।
मेरी किलकारी मे था एक गाना।
मेरे अब तक के जीवन में
मेरा बचपन था सब से सुहाना।
ना कुछ खोने का गम था
ना कुछ पाने की फिक्र।
जिधर ये मन लेता गया
वही बनी मेरी डगर।
ना चाहा किसी का बुरा
ना किया किसी से छल।
अपनी ही धुन में हर पल रेहता
कुछ ऐसा था मेरा बचपन।
कुछ धुन्धली सी कुछ मीठी सी
बातें याद आती हैं।
जितना भी कुरेदु इन्हें बस यादें रह जाती हैं।
एक मन्द सि मुस्कान जब चहरे पे आती है
कितना भी मैं खोना चाहु कितना भी मैं सोचु
बचपन की उन गलियों कि बस एक तस्वीर रह जाती है।