By Sanjeev Kashyup

वो आए फिर कल रात,
ऊंघती आंखों के आइने में
औ' बिखेर गए, करीने से सजी,
दबी यादों की अलमारी!
वो आंखो की चंचल चमक
ही काफी थी, हर माईने में,
कि फिर बज उठी, कानों में,
वो शरीर, उनमुक्त किलकारी!
मुड़े पावों का बनता झूला,
नखरे रोज के, दूध पीने में,
सप्तम सुर में, कविता पाठ,
मेरी पीठ पर तुम्हारी कलाकारी!
लगा कर पंख उड़ते आज तुम,
भरा गर्व है, हमारे सीने में,
हां उनिंदी आंखे तकती है,
वही यादों की अलमारी...