By Dr. Sulagna Bhowmick

पुष्प तुम सुन्दर हो
वर्ण विपुल सुगंधमय
तुम्हारे सौम्य स्वरूप से
हो आकर्षित
मन यह भूल जाता है कि
कितने मौसम के थपेड़ों को
झेला है तुमने
कभी चिलचिलाती धूप
तो कभी तीव्र झंझावातों को
सहा है तुमने
तुम वाटिका में खड़े
सहज ही मुस्काते
अभ्यागतों का सत्कार करते हो
अपनी मधुमय सुवास से
उनका मन हर्षित करते हो
तुमने अपनी परिणति का
कुछ स्वप्न न देखा होगा
न उसका पूर्वाभास है तुम्हें
या कहूं कि अपनी नियति से
हो अनभिज्ञ
प्रतिपल सरल हो
अपने वर्तमान मे
भविष्य की कामना
से हो विलग
निश्चिन्त हो हर हाल मे
कभी देवता के मस्तक
या के चरणों में
कभी किसी रमणी के
सौन्दर्य में
खुद को कभी अर्पित करते हो
जीवन अपना कुछ यूँ
समर्पित करते हो
पर चुनते हुए तुम्हें कभी
हाथों को किसी चुभन का
जो अहसास हुआ
वह कंटकोंं की अनुभूति
तुम्हारे अनुभवों का सार है
वह तुम्हारी पीड़ाओं का है प्रतीक
जो तुमने हृदय के गहन कक्ष में
छुपाए रखें हैं अनंत कालों से
और ओढ़ रखा है उसपर
अपने लावण्य का पट
अपनी स्निग्धता की छटा
जो औरों के जीवन मे
भरती रहती है
सुवासित सुभग को
प्रेममय आलिंगन को
पुष्प तुम मुख से
न व्यथा अपनी कहना
सदैव यूँही निश्छल मुस्कान से
प्रमुदित रहना|
খুউব সুন্দর কবিতা, আগামীর জন্য শুভেচ্ছা রইলো।
Touching ,soulful poem