By Vijeta Pachpor

बचपन में जो बंधन लगते थे
आज वो बंधनों को जीना चाहती हूँ माँ
उठ बेटी और चाय पी ले,
आवाज़ सुनने को तरसती हूँ माँ
तुम कितनी व्यस्त रहती थी हमेशा
मैंने कभी समझा नहीं
लगता था काम ही तो है
तुम्हें कभी जाना नहीं
अपना जीवन किसी के लिए कुर्बान कर देना
अपनी इच्छा की परवाह किए बिना हर काम कर देना
सबका इतना सुन कर भी हमेशा सबका सम्मान किया
आज समझ पायी तुम्हें जब अपना संसार शुरू किया
इतनी सहनशीलता कहाँ से लाती हो माँ
हर बात हँसकर कैसे पार कर लेती हो माँ
किसी की गलती कैसे अनदेखी कर लेती हो माँ
सबके लिए कैसे जी लेती हो माँ
बहुत कुछ सीखा आपसे और सीखना बाक़ी है
हर किसी को प्यार से संभालना
बस ये कला सिर्फ़ माँ की है
पर एक चीज़ है जो माँ को नहीं आती
खुद के लिए जीना वो कभी सीख ही नहीं पाती
ख़ुद के लिए एक पल जी कर जरूर देखना माँ
सबको जो खुशियाँ दी हैं
महसूस करके देखना माँ
एक प्यारा सा जीवन दिया है तुमने माँ
उस जीवन को प्यार से सँवारा है तूने माँ
शब्दों में बया नहीं कर पायेंगे शुक्रिया तुम्हारा
बस अगले जन्म में भी मिले आँचल तुम्हारा…