जिस्म की ये आख़री यादें – Delhi Poetry Slam

जिस्म की ये आख़री यादें

By Vedant Bhardwaj

जब ये जिस्म आया आया था,
तब हुई थी ख़ुशियों की बात,
जब ये जिस्म गया तो हुई आँसुओं की बरसात।
जब जिया था ये हमारा जिस्म,
तब सजाते थे,
गहनों से,
कपड़ों से,
क्या आख़िरी यात्रा आई हमारी,
सफ़ेद कपड़ों को हम पे थाम दिया,
अरे… कहाँ गए
वो सोने के हार,
वो रंगीले रंगीले सलवार।
जब पहला कदम रखा था,
तब पहना दिए ऊँची दुकान के जूते,
जब आख़िरी कदम आए ये हमारे,
तब ना नसीब में थे,
ना चप्पलें,
ना जुराबें,
क्या था ये जिस्म का नसीब।
जब मैं आया आया था,
तब मुझे गोद में ले लेकर घूमते थे,
अब मैं जाने क्या लगा,
मेरी सूरत,
मेरी महक से ही डरने लगे।
जब मैं छोटा था,
प्यास जब लगती थी,
प्याले,
शरबतों के, रूहअफ़्ज़ा के,
हमें पिला दिए जाते थे,
अब क्या लगी ये आख़िरी तिशनगी,
बस बूंदें पानी की,
बैठा दी ये मेरी ज़ुबान पे।
आया था तो जब मैं,
तब गरम कंबल में ओढ़ दिया था,
अब मैं तो क्या चला,
तो जलती हुई चिता पे लिटा दिया।
यही थी मेरे जिस्म की आख़िरी यादें,
यही थी मेरी तुम्हारे संसार से आख़िरी बातें।


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