तन्हा – Delhi Poetry Slam

तन्हा

By Dr Poojan Purohit

इस इज़दिहाम में तन्हा है ये ‘नवाज़िश’
मुखातिब है ये मासूम ज़हीन हुजूम से, है फ़ितरत की साज़िश।  

खामोश हूं आज हजारों सवालों का शोर सुनकर
गमज़ादा ना हो जाए ये महफ़िल मेरा एक जवाब सुनकर।  

बेआबरू होकर आज हस रहा है जमाना हमपर
गैरों को इज्जत बख्शी खुद को नजरों में गिराकर।  

ऐ चाँद याद रख तेरी चमक शम्ज़ से है
तेरे घर में रोशनी शायद औरों के अँधेरों से हैं।  

हमारी टूटी खामोशी तकदीर का रुख मोड़ जाएगी
इस चांद पर दाग न सही, ख़ुश अदायगी कि आस जरूर लायेगी।  


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