By Kamal Khanagwal

इन बेमज़हब बंदूकों का बोझ तू कब तक उठायेगा
ये दरिंदगी ये दहशत तू कब तक फैलाएगा,
एक रोज़ ये बोझ कंधों से जब उतारना होगा
और तुझे एक गहरी नींद में सोना होगा,
तेरे करम ना तुझको उस रोज़ चैन से सोने देंगे
क्यूँकि तेरी आँखों में तो उन सब मासूमों के चेहरे होंगे,
ये बोझ तेरे ज़मीर पर तेरी बंदूकों से कहीं भारी होगा
हर बेगुनाह उस चेहरे को जवाब तुझे देना बारी बारी होगा,
क्या सोचता है तू कि तुझे जन्नत नसीब होगी
नासमझ तू ये सोच कि तेरी मय्यत भी कैसी होगी,
चल तुझे मैं अपनी सबसे हसीन जन्नत नसीब करता हूँ
किसी मासूम कश्मीरी के घर तुझे बेटा बना के पैदा करता हूँ,
बोझ तेरे कंधों पे बंदूकों का नहीं अमन चैन का होगा, तो ही ये जीवन इस बार तेरा सफल होगा
वरना तुझ जैसे ही किसी शख़्स के हाथों बार बार और हर बार तेरा ही कतल होगा …
Such a powerful and moving piece.
Nishabad
Wow
Very nice kamalji
Aprateem😍♥️
Sateek abhivyakti..!
Nice 👍, well written.