स्वयं का स्वयं से टकराव – Delhi Poetry Slam

स्वयं का स्वयं से टकराव

By Yash Dubey

यह व्यक्तित्व का प्रभाव है, कुछ बात है तभी तो ताव है
जो आज शेर दिख रहे, किसको क्या पता के कितने घाव है?
बुझाने को वो बेकरार, बढ़ रही यहां सीने में जो अलाव है
हम ख़ुद ही ख़ुद को ताक रहे, यह स्वयं का स्वयं से टकराव है। 

सोच भले ही रईस हो, रखते सादगी का पहनाव है
हीरे को सब देख रहे, जानो तो कोयले पर कितना दबाव है
मिले कभी बारिश की बूंदों से, बताएंगे कितने पथराव है
हम ख़ुद ही ख़ुद को ताक रहे, यह स्वयं का स्वयं से टकराव है। 

है रुकावटें अनगिनत, हार जाना, यह कैसा बर्ताव है?
जीवन है चुनौतियों से, स्वीकारना या मर जाना यही चुनाव है
हर पल खुद को कठोर कर, सरल ज़िंदगी ही बचाव है
हम ख़ुद ही ख़ुद को ताक रहे, यह स्वयं का स्वयं से टकराव है। 

आज लग रहा कि जीत गए, अभी आ रहे और भी पड़ाव है
सफलता क्या आसान है?, चलते चलना सीधा चढ़ाव है
हो सपने कुछ, पूरा हो संघर्ष, न रुकने का यह मेरा सुझाव है
हम ख़ुद ही ख़ुद को ताक रहे, यह स्वयं का स्वयं से टकराव है। 


1 comment

  • बहुत ही सटीक एवं सारगर्भित रचना यश सर✨👌

    चन्द्रकिरण रघुवंशी

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