शख्सीयत बदल कर देखों – Delhi Poetry Slam

शख्सीयत बदल कर देखों

By Vrushali sarvajeet Gholkar

दूसरों के लिए नहीं..
कभीं..
ख़ुद से ख़ुद की शख्सियत बदल कर देखों..
आईने को ज़रा साफ़ करके देखों..

नज़र बदलो, नियत बदलो,
अपना ईमान बदल के देखों..
लापता अपना इम्तेहान लेके देखों..
रिश्तों को माफ़ करके देखों..

मन का मैल, जीत का खेल,
वो सहलाते ज़ख्म साफ़ करके देखों..
दिल के दरवाज़े खोल प्यार करके देखों..

राह बदलो, चाह बदलो,
अपनी जिद्दी आदत बदल के देखों..
जो खुशियाँ लाए ऐसी हर सुबह बदल कर देखों..
शामों का इंतजार करके देखों..

ख़ुद भी ग़लतियां माफ़ करके देखों..
ख़ुद से भी कभीं आगाज करके देखों..
दिल को थोड़ा बेकरार करके देखों..
एक बार खुद से भी प्यार करके देखों..
अपनी शख्सियत बदल के देखों.. ♥️

और कुछ नए नजरिए से..

बदलना ही था कभी तुमको..
कुछ करवट बदल मेरी ओर सरकते..

दूरी खामखाँ बनायी है तुमने..
बस एक हंसी में मुझको मनाते..

डूब जाते इन आखों में..
सामने बैठकर जिसमें तुम ठहरते..

महक अभी भी है मेरे बालों में..
जिनकी तारीफ करते तुम ना थकते..

छू लेते मेरे बदन की तपन को..
बस यूँही बिना कुछ कहे बस बाहों में भरते..

कभीं तो..
अपनी जिद छोड़..
मुझसे मेरे जैसी मोहब्बत करके देखों..

जो तनहा तुम भी हों वहाँ..
अपने दिल मे वहीं प्यार ढूँढ के देखों..

दिल को छू जाए ऐसी बातें तेरी..
बातों में एहसास पिरोकर देखों..

जब बारी आयी तेरी.. मंजिल मैं न थी तेरी,
ऐसा क्या है शहर में.. ये दूरी कम करके देखों..

फ़िर इस गांव की छोरि को एक नए नजरिए से देखों..
अपनी शख्सियत बदल के देखों.. ♥️❤️


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