अकेला सफर – Delhi Poetry Slam

अकेला सफर

By Vivek Thorat

इन आँखों में मंज़िल का ख़्वाब लेकर चले 
दिल जलाकर अंधेरों का जवाब लेकर चले   

वक्त के साथ साथ लोग चेहरे बदलते है 
हम भी अपने साथ में नक़ाब लेकर चले   

हवाओं कि दुश्मनी है मेरे चिराग़ों के साथ 
अब लगता है जेबों में आफ़ताब लेकर चले    

तूफ़ानों की साज़िश में शामिल है दरिया 
हम अपनी पतवार से सैलाब लेकर चले   

सारी उमर इंतज़ार में गुज़ार कर देखी 
अब बचे सासों का हिसाब लेकर चले   

अकेला सफ़र अकेले ही मुकम्मल होगा 
सर उठाकर पेशानी पे रुआब लेकर चले   


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