By Vivek Thorat
इन आँखों में मंज़िल का ख़्वाब लेकर चले
दिल जलाकर अंधेरों का जवाब लेकर चले।
वक्त के साथ साथ लोग चेहरे बदलते है
हम भी अपने साथ में नक़ाब लेकर चले।
हवाओं कि दुश्मनी है मेरे चिराग़ों के साथ
अब लगता है जेबों में आफ़ताब लेकर चले।
तूफ़ानों की साज़िश में शामिल है दरिया
हम अपनी पतवार से सैलाब लेकर चले।
सारी उमर इंतज़ार में गुज़ार कर देखी
अब बचे सासों का हिसाब लेकर चले।
अकेला सफ़र अकेले ही मुकम्मल होगा
सर उठाकर पेशानी पे रुआब लेकर चले।