आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं। – Delhi Poetry Slam

आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं।

By Vishwas Desai

ख्वाहिशों की मशालें कुछ अब भी जल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं,

पसीने की मुठ्ठी से अब अपने घर को संवारा हैं,
मानो रात के अंधेरों में कुछ जुगनू आवारा हैं,
खुशियों की टोली चहेरे पे उछल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं,

थम गया हैं तूफान जिंदगी के इम्तेहान का,
थक गया हैं दुश्मन अब तो अपने मैदान का,
चिंता की चिताह धीरे धीरे जल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं,

बढ़ते हुए पौधे हवाओं से मिल रहे हैं,
रिश्तों के फूल कुछ फिर से खिल रहे हैं,
सूरज की गर्मी धीरे धीरे ढल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं,

आरज़ू के समंदर अब ठहरे हुए हैं,
घाव दिल के मेरे अंदर कुछ गहरे हुए हैं,
मगर सांसें उम्मीदों की धीरे धीरे चल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं,

सवालों का झरना जबरदस्त बह रहा हैं,
जवाब उसके कानों में वक्त कह रहा हैं,
आफतों की वो बर्फें अब कुछ गल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं,

ख्वाहिशों की मशालें कुछ अब भी जल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैंI


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