By Vishal Dubey

एक वक्त था
बस यू ही दोस्त बन जाते थे
वक्त को मिल बांट के बिताते थे
कोई खेल न मिले तो बेचारी चींटियों को ही सताते थे
"में कुछ नहीं कर रहा" सुन कर दौड़े चले आते थे
अब इसी बात पर वो...
खैर, जाने दो।
रिश्तों में कोई शर्त ना रखी जाएगी
यह अफवाह समझ नहीं आएगी
औकात और चालाकी से परे
कोई शहर नहीं है
कागज की कश्ती उतार दु
अब ऐसी कोई नहर नहीं हैं
खैर, जाने दो।
उफ़। बचपने, तेरी वफादारी
बहुत पड़ी मुझ पर भारी
बचपन में ही छोड़ देता मेरा साथ
ताउम्र ना रहता खाली हाथ
खैर, जाने दो।
लेकिन तू उभर न पाए
दर्द इतना भी गहरा नहीं
तेरा खुदा मसरूफ़ सही, बेहरा नहीं
यू ही आंखों में भर ली ख़फ़गी की बूंदे
अब देख रहा है सबको आंखे मूंदे
खैर, जाने दो।