स्याह आभा – Delhi Poetry Slam

स्याह आभा

By Vinita Saraswat 

सज गई आँखों में जा कर
स्याह काजल बन गई ..!!
गोपियों के संग आ कर
श्याम साँवल बन गई ..!!

चाँद अमावस में छुपा तो
रात पागल बन गई ..!!
साए में सोने को अल्हड़ 
माँ का आँचल बन गई ..!!

चन्दन नहीं कोयला सही 
प्रस्तर वो काला बन गई ..!!
धागा वो काला गूँथ कर
पाँवों की पायल बन गई..!!


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