By Vijay Prakash

लगता नहीं है जी मेरा अब "एनसीआर" में
किस क़दर भरा है ज़हर यहाँ की बयार में
बुलबुल को "भाजपा" से न, न ही "आप" से गिला
क़िस्मत में धुंध थी लिखी फ़सल-ए-बहार में
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाए थे चार दिन
दो सम-विषम* में कट गए, दो अस्पताल में
कह दो सब नागरिकों से कहीं और जा बसें
इतना धुआँ, इतनी घुटन, गर्द-ओ-ग़ुबार में
हूँ कितना बदनसीब "विजय" सांस के लिये
ताज़ी हवा भी नहीं मिली कू-ए-यार में