By Vatsal Thakkar
पैर खींचने की कोशिश रखते है किसी की उड़ान के भीतर,
अब तो कोई इंसानियत भी नहीं रही इंसान के भीतर!
शहर- सड़के, गली-कुचें कही नहीं ढूंढ पाओगे उसे,
वो तो रहती है मेरी हर धड़कन में, मेरी जान के भीतर!
कितनी भी कोशिश करले ये दुनिया,
मुझ जैसा कोई खिलाड़ी नहीं आएगा इस मैदान के भीतर!
तेरे पायलों की आवाज, तेरी सारी का पल्लू सब याद आता है लेकिन,
मैं छुपा लेता हूं सब कुछ अपनी इस मुस्कान के भीतर!
आज फिर एक भौकाल आया हैं, सब तबाह कर गया है,
नींदें उड़ चुकी होगी और कितना खौफ होगा उस किसान के भीतर!
सब दुश्मनों को हराकर आया हूं बस दोस्तो से डर लगता हैं,
"वत्सल" ने भी एक तीर रखा हुआ है अपने कमान के भीतर!