Varsha Rani – Delhi Poetry Slam

Colgate

By Varsha Rani

यह कविता मैंने 70 वर्ष पहले बीते अपने बचपन के साथी कोलगेट की याद में लिखा है,
तब कोई और ब्रांड इतना लोकप्रिय नहीं था।
आज भी हमारे घर के बच्चे इसका ही प्रयोग करते हैं।

कोलगेट
कोलगेट कोलगेट,
नहीं सिर्फ टूथब्रश,
नहीं सिर्फ टूथपेस्ट।

खोलता है, खोलता है,
दुधमुंही यादों का,
चमकीले दांतों का,
स्वस्थ मसूढ़ों का,
सुन्दर से बचपन का,
मधुर–मधुर फ्लडगेट।

उजली उजली भोर का,
चिड़ियों के शोर का,
माँ की पुकार का,
बाबा के मनुहार का।

दिन की शुरुआत करो,
मोती जैसे दांत करो,
बाज तुम न आओगे
जो भी मिला वो खाओगे।

सामना जो करना है,
चॉकलेट की मिठास का,
अमियों के खटास का,
तीखे गोलगप्पों का,
चाट और पकौड़ियों का,
चूरन और पाचक का,
बुढ़िया के बाल का,
आइसक्रीम के काल का,
तब कोई नहीं साथ होगा,
फिर कोलगेट ही तो ढाल होगा।

हमको क्या लेना तब नीम या बबूल था,
माँ-बाबा को तो बस कोलगेट ही क़ुबूल था।

सारा दिन बीते अपना,
दोस्तों के साथ-साथ,
खेल और मस्ती में,
रूठने मनाने में,
खाने और खिलाने में।

रात जब धीरे-धीरे अपना आँचल फैलाये,
नींद की रानी जब मीठी लोरी गुनगुनाये,
एक बार फिर से तब कोलगेट की याद आये।

कल दिन एक और होगा,
बिना साथी कोलगेट के,
कैसे मस्तियों का दौर होगा?

बचपन अब रूठ गया,
माँ–बाबा का साथ भी छूट गया,
बाजारों के रेले में,
ब्रांडों के झमेले में,
सजे-सजाये ताखों पर,
ब्रश और पेस्टों की बाढ़ में,

अचानक ही नज़र जब अपने कोलगेट पर पड़ती है,
सुधियों के बादल फिर उमड़–घुमड़ जाते हैं,
बचपन की यादों को संग लिए आते हैं,
चुपके से एक बार फिर कोलगेट उठाती हूँ,
अपने नन्हे के हाथों में धीरे से थमाती हूँ।

मेरे माँ–बाबा से मिला मुझको,
अब तुम्हारी थाती है।


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