By Vandana Singla

दरवाजे पर दस्तक हुई,
दरवाजा खोला तो जिंदगी को सामने खड़ा पाया,
मेरा परिचय पूछे बिना,
अपना परिचय दे कर हाथ मिलाया।
शोखी से नजरें मिलाई,
थामा मेरा हाथ, खींचा बाहर।
कहा चल, ग़म से परे,
इक नई दुनिया में चले।
ले गयी, खुशी की वादियों में,
वहां का अजब नज़ारा था,
हरेक नज़ारा प्यारा था।
मौसम खुशगवार था,
चारों तरफ़ खुमार था,
फ़क़ीरों सी मस्ती थी,
उसमें ग़म की क्या हस्ती थी।
हँस कर कहा ज़िंदगी ने —
घूँट घूँट कर पी मेरी सुराही से,
झूम मेरे नशे में,
मत दुबक कर बैठ ग़म के अंधेरे में।
आ, सांझा कर जाम से जाम,
लिख अपने आप को मेरे नाम,
डाल बाँहों में बाँहें,
तेरी तलाश को दूँगी नई राहें।
मेरी आँखों से दुनिया देख,
खुला आसमान देख,
आसमाँ का विस्तार देख।
फूलों के रंग देख,
प्रकृति का रंगों से संग देख,
उन रंगों से सजा धरती का अंग देख।
इस सुरूर का ले आनंद,
कर ग़म की खिड़की बंद,
दफ़्न कर अपने ग़म, आ।
इक नई कोशिश से मंज़िल जीते हम।