By Vaishnavi Tripathi
ये मन मुझे कठपुतली सा नचाता है
एक हिस्सा मुझे इधर तो दूसरा खींच कहीं और ले जाता है
एक है जो अतीत से घबराता है
और भविष्य का सब जान लेना चाहता है
और दूसरा है कि अतीत को फिर से दोहराना चाहता है
एक बच्चा है जो माँ से फिर से रूठना चाहता है
उसकी थपकी को बेचैन, वो अपनी लोरी खुद ही गुनगुनाता है
कभी संभावनाओं के भँवर में सुखद स्वांग रचाता है
कभी अनहोनी की कल्पनाओं में ये मन, मन ही मन घबराता है
कभी स्वर्ग तो कभी मेरा नर्क,ये मन मेरा दो हिस्सों में बट जाता है
एक है जो फिर एक नई कहानी लिखना चाहता है
जो सूर्यमुखी बन,हर बार किरणों को पीना चाहता है
और एक है जो आराध्य को अर्पित होना चाहता है
थक गया है जो अगली भोर से पहले कि वो अब अंतिम विराम चाहता है।
Too good
बहुत खूब, बहुत प्यारा।
❤️