गोपी – Delhi Poetry Slam

गोपी

By Vaishnavi Gamit

गलती थी मेरी ।।
कसूर ना उसका, 
था गिरधर जेसा वो, 
हुआ था हृदय जिसका |

गलती थी यही ।।
कि समझी राधा खुद को, 
मगर समय ने समझाया, 
मानता वह गोपी मुझको |

गलती मेरी थी ।।
खुद को राधा माना मैंने, 
रहना चाहती पास उसके, 
इसके कारण ही हृदय दुखाया मैंने |

गलती हो चुकी ।।
सुधार नहीं सकती, 
अब एक साधारण गोपी भाँति, 
उसको भुला नहीं सकती |

गलती को सुधार नहीं सकती,
श्याम से दूर जा नहीं सकती ।।


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