VACHAN - THE PROMISE – Delhi Poetry Slam

VACHAN - THE PROMISE

By DEVANSH TIWARI

 

 

था वो एक 
भावुक हृदय,
कर्तव्यनिष्ठ और शांत ।
आइए सुनाता हूं मैं अभी
एक बहु धनी का वृतांत ।।

तेज मस्तिष्क और
गहन ज्ञान,
व्यक्तित्व उसका
अति नामी था ।
चारु शिशु,
मनोहर स्त्री ।
विराट भवन का
वो स्वामी था ।।

"हर दिन
ना समान है 
मानव का,
आज प्रफुल्ल
तो कल रोता है ।

परिवर्तन ही यह
जीवन है,
देखें आगे 
क्या होता है" ।।

संध्या समय,
निडर अभय
वो अपने 
गृह को आता है ।
पर एक भिक्षु 
को द्वार देख ।
वो शीघ्र वही
रुक जाता है ।

भिक्षु था अत्यंत दरिद्र 
अन्न जल का
अभावी था ।
फटे वस्त्र
अस्त व्यस्त,
प्रतिकूल समय
प्रभावी था ।

देख उसकी ऐसी
निकृष्ट स्थिति
शीत लहरी से,
ठिठुरती परिस्थिती ।
शीघ्र भोजन,कम्बल का
वचन धनी देता है ।
निज उदार हृदय से 
परिपूर्ण उसकी
अल्प चिंता को
हर लेता है।

करके गृह में 
अपने वो प्रवेश ,
जब बच्चों से वो
मिलता है
उल्लासित मन 
तेजस चेतन
वो स्त्री से 
संवाद कर
खिलता है ।
माता , पिता के
स्वास्थ जान
जब भोजन करके
सोता है ।
हर्षित जीविका का
दृष्टांत यही
यही तो मौलिक
जीवन होता है ।

पर उघड़ते हैं जब
नेत्र प्रातः
मन व्याकुल
तन अशांत
हो जाता है।
जब उस भिक्षु को
दिया वचन
परस्पर याद उसे
आता है।

तीव्र पग
डग मग
डग मग 
वो भागता हुआ जाता है ।।
मुख पे आश्वासन
की शिथिलता लिए

भिक्षु को मृत वो 
पाता है ।

है नहीं अपेक्षित
है नहीं उचित
ये वचन कभी किसी से
अगर न पूरा कर पाए

है नहीं अपेक्षित
हैं नहीं उचित
किसी और पे आश्रित
मर जाएं ।


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