महताब – Delhi Poetry Slam

महताब

By Utkarsh Bhaskar

मुद्दतों से आँखों में एक सपने को संभाल रखा है,
उनके चेहरे के नूर ने महताब को बदहाल रखा हैl

मैंने शाम-ढले जुगनुओं को उनके साथ खलेते देखा,
बनाने वाले ने जैसे हूर-ए-फ़िरदौस का ख़याल रखा हैl

रातों ने उनके आँखों से काजल उधार लिया हो जैसे,
उनकी बिंदी ने सूरज को शर्म से कर लाल रखा हैl

उनके तारीफ़ में कोई लिखे भी तो भला क्या-क्या लिखे,
जहाँ भर के शायरों को उनके हुस्न ने कर कँगाल रखा हैll


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