By Urmi Bhattacharjee
ख़ामोश ख़्वाहिशें रह गए बेज़ुबान..
क़रीब जो थे इतने, आज बन गए अंजान..
आशिक़ी की आतिश में उसके,
हम जल गए कुछ ऐसे..
बहते अश्क़ से भी न बुझे,
इन आँखों को समझाए कौन कैसे..?
क़ुबूल-ए-इश्क़ तो उसे भी होगा, जब क़यामत होगी !
जनाज़ा मोहब्बत का उठेगा, तो ख़ुदा की करामत ही होगी !!
ऐ-दिल, दे दे अब तू भी,
ये इंतज़ार की इम्तिहान..
सुना है... कहते हैं कि -
ये इश्क़ नहीं है आसान!
शायद इसलिए...
ये इश्क़ है कामिल,
रहकर भी बेज़ुबान...