बेज़ुबान – Delhi Poetry Slam

बेज़ुबान

By Urmi Bhattacharjee

ख़ामोश ख़्वाहिशें रह गए बेज़ुबान..
क़रीब जो थे इतने, आज बन गए अंजान..

आशिक़ी की आतिश में उसके,
हम जल गए कुछ ऐसे..

बहते अश्क़ से भी न बुझे,
इन आँखों को समझाए कौन कैसे..?

क़ुबूल-ए-इश्क़ तो उसे भी होगा, जब क़यामत होगी !
जनाज़ा मोहब्बत का उठेगा, तो ख़ुदा की करामत ही होगी !!

ऐ-दिल, दे दे अब तू भी,
ये इंतज़ार की इम्तिहान..

सुना है... कहते हैं कि -
ये इश्क़ नहीं है आसान!

शायद इसलिए...

ये इश्क़ है कामिल,
रहकर भी बेज़ुबान...


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