By Trivendra Taragi
पहचान करने चला था दूसरों की,
खुद को ना पहचान सका जो कभी,
कैसी विडंबना है ना अभी!
कितना खूबसूरत है यह दृश्य अभी!
पहचान करने चला था दूसरों की
खुद को ना पहचान सका जो कभी,
सामने खड़ा था वह शीशे के सम्मुख,
दृश्य परिवर्तित होने चला, यथार्थ उसके सम्मुख खड़ा!
प्रश्न पूछ रहा वह खुद से उत्तर मिल रहा उसे सामने
सुन रहा कुछ बीती दिखा रहा कुछ अनदेखी,
कल्पनाओं का दृश्य शीशा पूछ रहा अब उससे
तू है कौन? और क्या करने आया?
जो तू है क्या तू वही बनने आया!
संवेदनाएं हुई रूह में कुछ ऐसी
अहसास हुआ अभी के अभी,
खुद के कुछ कार्य बाकी है
खुद को जानना अभी बाकी है!
यथार्थ में हुआ पुनः प्रवेश
कुछ अजीब अजीज सा था
भावनाएं थी बदली बदली,
किरदार में कुछ नया सा था
पहचान करने चला था दूसरों की
यह अब कुछ नया नया सा था!