उड़ान की क़ीमत – Delhi Poetry Slam

उड़ान की क़ीमत

By Tripti Sharma

 

 

जितनी ऊँचाइयाँ छूते जाओगे,
उतना ही खुद को दलदल में फँसा पाओगे।
चमकोगे जब सूरज की तरह तेज़,
अंदर कहीं स्याह अंधेरा और गहरा पाओगे।
भीड़ तुम्हारी रौशनी पर तालियाँ बजाएगी,
पर कोई तुम्हारी थकान नहीं समझ पाएगा।
हर मुस्कान के पीछे की चुप्पी,
तेरे अपने भी शायद न पढ़ पाएँगे।
जितना भीड़ में आगे बढ़ते जाओगे,
उतना ही अकेलेपन में खुद को घिरा पाओगे।
हर चेहरा जाना-पहचाना लगेगा,
पर सच्चा अपनापन कहीं खोता सा लगेगा।
तू चलेगा शोहरत के उन सूने रास्तों पर,
जहाँ हर मोड़ पर तन्हाई तेरा इंतज़ार करेगी।
लोग तेरा नाम पुकारेंगे ऊँचे मंचों से,
मगर नज़रें चुराकर आगे बढ़ जाएँगे।
फिर भी ये समझ ले तू—
थक कर रुक जाना तेरी फ़ितरत नहीं है,
अकेले रास्तों से डर जाना तेरी आदत नहीं है।
तू रख विश्वास अपने इरादों पर,
तुझसे मुँह मोड़ ले, इस दुनिया में इतनी हिम्मत नहीं है।
कभी वक़्त निकाल, अपने साए से बात करना,
वो तुझे तेरा सच्चा अक्स दिखाएगा।
झुककर कभी देखना उन जड़ों की ओर भी,
जिन्होंने तुझे उड़ने का हौसला सिखाया।
क्योंकि रौशनी जितनी तेज़ होती है,
अंधेरे उतने ही गहरे साथ आते हैं। 
जो खुद को थाम ले इन दोनों के बीच,
वही सच में मुकम्मल कहलाते हैं।
तेरे हौसलों की उड़ान ही तुझे और मज़बूत बनाएगी,
तू देखना— एक दिन तेरी चमक ही तुझे तुझसे मिलवाएगी।


9 comments

  • Beautiful poem madam

    Tanvi
  • Very beautiful poem. You have described today’s reality in wonderful words.

    Rishi Sharma Lucky
  • Awesome

    Harsh
  • Awesome mam, it’s really heart touching lines.
    Beautiful 👏

    Parveen
  • Awesome

    Shashi
  • Too good. Keep it up.

    HJ
  • Behatreen

    KGSharma
  • Wah wah……

    Nitin
  • Beautiful ❤️❤️

    Kuvam

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