By Titash Bagchi Lele

माँ की ममता, पिता का प्यार,
छोटी छोटी चीजों में खुशी मिलने का इंतज़ार।
क्षण भर में तकरार, और अगले ही पल ज़िंदगी साथ निभाने को तैयार,
बचपन था खुशनुमा सा, हर तरफ जगमगाती आशा की पुकार।
जब भी आता था कोई त्यौहार,
रोम रोम खुशी से झूम उठता यूँ ही हर बार।
हर चेहरे से छलकता प्यार-दुलार,
चारों ओर रौनक, बचपन था खुशनुमा सा,
होती थी सेहतमंद और पवित्र सोच-विचार।
गृष्मावकाश हो या बदल रही हो सरकार,
छुट्टी की शुरुआत और दोस्तों की हाँक पुकार।
पढ़ाई के पल दो-चार और दिनचर्या खेलने में मुख्तार,
दिल छोटी खुशियों का लाचार, ऐसा था तब संसार।
बचपन था खुशनुमा सा,
एक बार फिर निभाने को मिल जाए वो किरदार।