By Tanvi Kulkarni

कि जीवनशैली सुधारते,
अक्सर ये भूल जाते हैं,
कि हमारी पहचान,
हमारी जड़ों से है।
कि व्यावहारिक होना भी ज़रूरी है,
पर सहानुभूति की क़ीमत पर नहीं।
हम यंत्र-मानव नहीं,
बल्कि इंसान हैं।
यूँ तो पत्थर भी,
बादलों के आँसू बहाने पर टूटते हैं।

कि जीवनशैली सुधारते,
अक्सर ये भूल जाते हैं,
कि हमारी पहचान,
हमारी जड़ों से है।
कि व्यावहारिक होना भी ज़रूरी है,
पर सहानुभूति की क़ीमत पर नहीं।
हम यंत्र-मानव नहीं,
बल्कि इंसान हैं।
यूँ तो पत्थर भी,
बादलों के आँसू बहाने पर टूटते हैं।