By Sweta Singh
मुझमें शहर ज़्यादा, गाँव थोड़ा कम है
मेरा जन्म हुआ शहर में,
शायद यही भरम है !
शहर का छलावा
मुझमें थोड़ा कम है
मैं खुश हूँ इस बात से
कि मेरा दिल अभी भी नम है !
पिता का अभिमान
माँ का मुझमें श्रम है
कुछ देने से न सकुचाऊँ
देना ही मेरा धर्म है !
पिज़्ज़ा-बर्गर भाते हैं
पर आग पे सिके आलू ही मन को लुभाते हैं
जब तक फली गँवार न हो जाए
जीने में क्या मज़ा
ये तो बस फिर एक और “जनम” है !
कोई बाबू या बबुनी कहे
तो बड़ा मीठा लगता है
“ब्रो” या “सिस” में
ये मिठास थोड़ी कम है !
गाय को रोटी खिलाकर
ग्रहों को शांत करना शहर का चलन है
गाँव में गाय को चारा खिलाने में
अब भी ज़्यादा दम है !
मुझमें शहर अधिक नहीं
गाँव का ही मन है!