विषादयोग – Delhi Poetry Slam

विषादयोग

By Swapnila Bhoite

शब्द स्तब्ध, विचार निशब्द
अडिग, अचल, निर्दय – कैसा यह प्रारब्ध?
विषाद निर्मम, अश्रु स्थगित, जीवन स्थिर,
असह्य अंगार पथ का तू पथगीर।

आसक्ति, विरक्ति, मोह का जाल,
कठिन है कर्मभूमि की मायाजाल।
आत्मप्रेम, आत्मशुद्धि या आत्मसंतृप्ति –
वैकल्पिक प्रश्नोत्तरी जैसी यह जीवनी।

लाचार विचार, महत्वाकांक्षी मौन,
प्रचलित धारा में समाविष्ट समूह-स्नान।
मूर्छित अवस्था, आहत अभिलाषा,
बेरंग, निरुत्साही, खंडित जीजिविषा।

अशांत श्वास, विचलित विश्वास,
एकाकी आदतें, अनंत वैराग।
प्रेम – बस पीड़ा, प्रपंच, और अंत में परित्याग।
अस्तित्व संघर्ष, निरंतर कर्मयोग,
जीवनी अर्थात – मोहभंग, अपेक्षाभंग, अविरत विषाद योग।


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