By Surbhi Patle

मेरे मन के अंधेरों में
मेरे सवालों के जालों में उलझा हुआ हूँ मैं
सिर्फ तुझे याद करके
सिर्फ तेरा नाम लेकर सुलझ जाता हूँ मैं
मुझे तू हर अंधेरों में, हर उजालों में,
हर मिट्टी, हर बूंद में दिखती है
कई बार यह भूल जाता हूँ और ढूंढता हूँ तुझे बाजारों में
मैं हर शहर में, हर गली में भटकता हूँ
कभी यहां तो कभी वहां घूमता
तू मिलती नहीं मुझे पर,
तू मिलती नहीं मुझे पर, फिर मैं आंखें बंद कर लेता हूँ
अब फिर से वही मन का अंधेरा है
फिर से वही सवालों का जाला है
पर अब तू साफ नजर आती है, रात में भी रोशनी दिख जाती है
फिजूल ही ढूंढता हूँ तुझे मैं बहार, क्योंकि तू मेरे मन की चिंगारी है