क्या तुम समझ पाओगे? – Delhi Poetry Slam

क्या तुम समझ पाओगे?

By Supreet Kaur

 

 

तुम पूछते हो ना, ये प्यार क्या है।
जानना चाहते हो, मेरा जवाब क्या है।
कहते हो ता-उम्र चाहूंगा तुम्हें,
फिर मुझे, ऐतराज़ क्या है?

बता तो दूंगी,
क्या तुम समझ पाओगे? 


उस रात के अंधेरे में,
जब चाँद के साए तले बातें कर रहे थे हम।
तो चुपके से तुमने, मेरा हाथ थाम लिया था।
मैं जो खफा होकर चली,
तो पीछे से चिल्लाए थे तुम,
बताती क्यों नहीं, आखिर बात क्या है?

बता तो दूंगी,
क्या तुम समझ पाओगे? 

एक मासूम बच्ची को, जब आइस-क्रीम दिलवाई थी तुमने,
उसकी किल्कारीयों ने मेरा चेहरा खुशनुमा कर दिया था।
तब मेरा दीदार कर कहा था तुमने,
कि इस मुस्कान पर मैं अपनी हर खुशी वार दूंगा।
ये सुनते ही जब मेरी हँसी फुरकत हुई, 
तुम्हारे माथे की लकीरे लौट आई।
पूछा था तुमने तब शायद, 
इस बेरुखी की वजह क्या है?

बता तो दूंगी,
क्या तुम समझ पाओगे? 

जब मेरी आँखों में अपने लिए वो लगाव टटोलते हो,
जब अपनी आँखों को मेरे सजदे में झुकाते हो,
पिघल तो जाती हूँ मैं पर दिखा नहीं पाती,
कहना तो कुछ चाहती हूँ तुमसे, 
पर हिम्मत जुटा नहीं पाती।
तब तुम भी थक कर, चिढ़ कर कहते हो,
मेरा गुनाह क्या है?

बता तो दूंगी,
क्या तुम समझ पाओगे? 

एक गुमनाम सी गली के,
उस सुनसान से मोड़ पर,
एक बड़े से पेड़ के नीचे,
पुरानी कुछ बातें दफ्न हैं कहीं।
कभी जब मैं उन यादों में डूबी,
सिस्कियाँ लेकर रोती हूँ तो तुम भी तो सोचते हो,
आखिर उसका नाम क्या है?

बता तो दूंगी,
क्या तुम सुन पाओगे? 

क्या सुन पाओगे कि तुमसे पहले मुझ पर किसी और का हक था,
क्या सुन पाओगे कि उस पर क़ुरबान मेरा सारा वक्त था।

क्या सुन पाओगे कि जिन नामों से तुम मुझे कभी बुलाया करते हो,
वो मेरे बीते हुए कल का वजूद है,
क्या ये सुन पाओगे कि मेरे फोन में अब भी उसकी तस्वीर,
मेरी वफ़ा का सबूत है।

क्या सुन पाओगे कि आज भी उसके नाम से दिल धड़कना भूल जाता है,
क्या ये सुन पाओगे कि तुम में कभी-कभी मुझे वो नज़र आता है।

क्या सुन पाओगे कि उसके वादों का सुरूर मेरे ज़हन से हटा नहीं है,
क्या ये सुन लोगे कि मोहब्बत क्या होती है, अब मुझे पता नहीं है।

क्या कह दूं तुम्हें कि सब्र रखो ज़रा, बेबस हूँ मैं,
मज़ाक तो नहीं बनाओगे औरों की तरह, कि कैसी शख्स हूँ मैं।

क्या सुन लोगे कि हर आहट पर लगता है, वो लौट आया है,
क्या ये सुन पाओगे कि कल रात भी मुझे उसका सपना आया है।

क्या सुन लोगे कि उसके बिना मेरी जिंदगी शायद बदतर है,
क्या ये सुन पाओगे कि वो इस लाश का पारस पत्थर है। 

ये सब कुछ बताऊंगी तुम्हें, पर पहले तुम बताओ,
क्या तुम समझ पाओगे?


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