सकुचाई सी धूप – Delhi Poetry Slam

सकुचाई सी धूप

By Sudha Rathor

पत्तों के कंधों पर बैठी
सकुचाई सी धूप

कुछ फुनगी पर हैं अधलेटीं
उन्मीलित से नैन
मिली हवा की छुअन, यकबयक
मुखर हो गए बैन
लगीं झूलने अलगनियों पर
शैशव लगे अनूप
सकुचाई सी धूप

बैठ मुँडेरी पर बतियातीं
करतीं मधुरिम हास
कहें नीम की छाया से तुम!
अभी न आना पास
मुग्धा वय है अभी, लाज है
उसके ही अनुरूप
सकुचाई सी धूप

छुअन रेशमी, तन हरारती
मखमल सा अहसास
यौवन आया घुला श्वास में
उष्मा का परिहास
किरणों का आँचल लहराती
अल्हड़ता अभिरूप
सकुचाई सी धूप

दिखा क्षितिज में श्यामल साया
पाँव तले नम दूब
उतरी गिरि से पग पखारने
गई झील में डूब
रजनी का छौना पछताया
मिली न धूप अनूप
सकुचाई सी धूप

पेड़ों के गूँजे उष्मित स्वर
पहन दीप्त नव-चीर
चंदन सजा ललाट पर जैसे
हो महंत गंभीर
लगीं टहनियाँ पाँव चूमने
देख उज्जवल रूप
सकुचाई सी धूप

©सुधा राठौर


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