मूंछ – Delhi Poetry Slam

मूंछ

By Sudarshan Jha

माँ कई बार बच्चे को सौंप चुकी थी -
सूखे स्तन,
बेकार पड़े बेलन,
खाली थाली,
छोटे बर्तन,
और घर की तमाम खेलने की चीज़ें।

पर तब भी
बच्चा भूख से रो रहा था,
बिलख रहा था।

आख़िर में,
मुट्ठी भर बचाए हुए आटे की लोई से
माँ ने उसकी मूंछ बना दी।

और बच्चा काफ़ी देर तक
चुपचाप अपनी मूंछ से खेलता रहा।


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