नहीं! नहीं! नहीं – Delhi Poetry Slam

नहीं! नहीं! नहीं

By Subhash Sharma

खो देना सब कुछ
उम्मीद को नहीं,

भुला देना सब कुछ मगर
तमीज को नहीं,

ठुकराना किसी को भी मगर
किसी बदनसीब को नहीं,

भुला देना किसी को भी मगर
दिल के करीब को नहीं,

छोड़ देना कोई भी मकान मगर
घर की दलहीज को नहीं,

दुत्कारना किसी को भी
किसी शरीफ को नहीं,

पहलू में लाना किसी को भी
किसी अजीब को नहीं l


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