नहीं! नहीं! नहीं – Delhi Poetry Slam

नहीं! नहीं! नहीं

By Subhash Sharma

खो देना सब कुछ
उम्मीद को नहीं,

भुला देना सब कुछ मगर
तमीज को नहीं,

ठुकराना किसी को भी मगर
किसी बदनसीब को नहीं,

भुला देना किसी को भी मगर
दिल के करीब को नहीं,

छोड़ देना कोई भी मकान मगर
घर की दलहीज को नहीं,

दुत्कारना किसी को भी
किसी शरीफ को नहीं,

पहलू में लाना किसी को भी
किसी अजीब को नहीं l


2 comments

  • खाकर ठोकरें जिंदगी की जमाने नहीं बीतें हैं, अभी कल ही की तो बात है ,अभी तो जख्म नहीं सूखे हैं। उनसे बिछड़ने के बाद हिसाब समझ में आया कि एक और एक दो नहीं ग्यारह ही होते हैं। क्या करना है अब और जिंदगी में, सुझाई कुछ नहीं देता , उलझना तेरा और मेरा जिंदगी इसी को कहते हैं संध्या सुंदर

    Sandhya sunder
  • जीने की उम्मीद तब तलक , जब तलक कोई एक सहारा तो हो। दीए को भी उम्मीद होती है कभी अंधेरा तो हो।

    Sandhya Sunder

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