ज़िन्दगी और मैं – Delhi Poetry Slam

ज़िन्दगी और मैं

By Srishti Tiwari

ज़िन्दगी की दौड़ में कहा तक भागोगे
एक दिन पीछे मुड के पुराने घर को निहारोगे
कदम तुम्हारे पीछे चल नहीं पाएंगे
और थके इतने होंगे की आगे बड़ा नहीं पाएंगे। 

जहां से भाग कर निकले थे वह वापस जा नहीं पाओगे 
और ज़िन्दगी ने जहा सताया उसे मुड़कर देखना नहीं चाहोगे
पर जहा भाग कर पोहोच गए हो क्या वह ख़ुशी ढूंढ पाओगे 
आखिर में बस रहेगा यही
की क्या में था और क्या हो गया हु। 

इस सफर में पा लिया सब खुद को खो बैठा हु
पाया वो जो दिखे सबको
बस में जो ख़ुशी चाहता था उसको तो पीछे कही छोड़ आया हु 
अब किस पर इलज़ाम लगाऊ इसका
दूसरो पर क्या दोष डालू इसका
में तो खुद ही दुसरो के लिए अपने सपनो को अलविदा कह आया हु। 

इस दुनिया की ज़ंजीरो ने ऐसा मुझे जकड लिए 
ज़िम्मेदारियो के टेल दबाकर मेरी हसी को मुझसे चीन लिया
क्या वही रेपेटेड लाइफ जीने आया था में
जो इस ज़िन्दगी ने मुझसे मुझको ही चीन लिया। 


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