आख़िरी सफ़र! – Delhi Poetry Slam

आख़िरी सफ़र!

By Sonu Khan

 

 

वो जो हर नमाज़ में था सबके आगे,
आज खुद सफ में पीछे खड़ा है।
जिसने क़ुरान से रौशन की थीं राहें,
आज लेटे हैं सब उसकी रहगुज़र में।
 
न आवाज़, न ख़ुत्बा, न रुकू,
सिर्फ़ ख़ामोशी है... और है एक आख़िरी सज्दा।
इमाम भी खुद है एक मुसल्ली बना,
मरहूम के लिए दुआ में ढल गया।
 
यही है सबक़, यही निशान है,
ज़िंदगी फ़ानी है, बस रह जाती है कहानी।
न रुतबा काम आता है, न शान-ओ-शौकत,
आख़िर में सिर्फ़ आमाल का है बोलबाला।


3 comments

  • Wow

    Aakash
  • Khoobsurat bayan

    Zeeshan
  • True

    Furakan Khan

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