By Somya Sweta
रोका
बांधा
बड़े वास्ते दिलाये
आँखों से शर्म का पानी भी छलका
पर दिल से वह एहसास न रूठा
लालसाओं का वह कम्पन
सारी बेड़ियाँ
तोड़ मरोड़ गया
और मैं...
डर की चादर उतार
गहराईं की और बढ़ती
आमोद विभोर
स्मित
अनुभूतियों के बवंडर से
एक उसे समेट
पल्ले की छोर में गाँठ बाँध
संभाल
संजो
छुपा
आँखों में उसकी काया सजा
लौटने को हुई
सार्थक
संतुष्ट
स्मित
सतह पर आकर
गाँठ खोली
एक और बार
उसे निहार
छू
पुनः पुष्टि को
जी मुँह को आया
हाथों लकीरों की तरह
दामन
फिर खाली था
और मैं...