By Smriti Malhotra

समझती थी जिसको वो उसका प्यार,
वो निकला उसका व्यापार,
ले गया उसको एक दिन भरे बाज़ार,
और खुलेआम करा उसके जिस्म का प्रचार।
वहाँ कोई नहीं था सुनने वाला उसकी पुकार,
दूर-दूर तक था सिर्फ़ अंधकार,
हो चुकी थी वो वेश्यावृत्ति की शिकार।
रोज़ सोचती थी कि काश हो जाए कोई चमत्कार,
शायद निकल पाए इस दर्द की दुनिया से किसी प्रकार,
और जी पाए अपनी ज़िंदगी अपने अनुसार।
जिसको समझती थी वो अपना राजकुमार,
और जिसके साथ बसाना चाहती थी वो अपना परिवार,
उसी प्यार ने छोड़ दिया उसे बेबस और लाचार,
बना के रख दिया उसके प्यार को बस एक व्यापार।