Sindoor – Delhi Poetry Slam

Sindoor

By Dr Pooja Neemey 

मैंने सिंदूर लगाना छोड़ दिया,
कैसे धमकाओगे अब जो डरना छोड़ दिया
हाँ, मैंने सिंदूर लगाना छोड़ दिया।

ये साँसें तो प्रभु की हैं,
जब जी ले लें उसकी मर्जी।
ये सिंदूर भी प्रभु ने दिया,
जो मिट जाए तो उसकी मर्जी।
अब मेरे राम की मर्जी पर,
मैंने शक करना छोड़ दिया...
मैंने सिंदूर लगाना छोड़ दिया।

सिंदूर तो श्रृंगार है,
पर दुश्मन की ललकार है...
ये सिंदूर मेरी कमजोरी नहीं,
मेरी तलवार है।
न होने दूंगी तुम्हें तुम्हारे मंसूबों में कामयाब
इस हिंद की बेटी ने अब भीखचारे में रहना छोड़ दिया।
(भाईचारा को यहाँ भीखचरा अलंकार दिए गया है)

अरे हिंदू हो, हिंदी में कब समझोगे तुम
कब तक जयचंदों की सेना बनाते रहोगे तुम
मैंने ऐसे जयचंदों से भी डरना छोड़ दिया
मैंने सिंदूर लगाना छोड़ दिया।
मैंने सिंदूर लगाना छोड़ दिया।

यह कविता शक्ति, साहस और स्वाभिमान की प्रतीक है, जिसमें सिंदूर को एक प्रतीक के रूप में उपयोग किया गया है। कविता में देशभक्ति और सशक्तिकरण की भावना को व्यक्त किया गया है।


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