कैसी ये दुनिया – Delhi Poetry Slam

कैसी ये दुनिया

By Simran Mehrotra


(2025 की घटनाओं पर आधारित)

डर लगता है अब इस दुनिया में रहने से,
जहाँ हर कोना जैसे दुखों से भरने से।

कभी ट्रेन हादसा, कभी पुल टूट जाता है,
जलगांव में लोग चिल्लाते, पर कोई न बचा पाता है।

बेंगलुरु में भीड़ में जिंदगी दब गई,
खुशियों की भीड़ कब मौत में बदल गई।

गुजरात में पटाखे जलने से चिंगारी उठी,
एक पल में कितनी मासूम जिंदगियाँ बुझी।

पुणे का पुल भी गिर पड़ा,
कितनों का सहारा वहीं छूट गया।

आसमान में भी गूँज उठा मातम का स्वर,
एयर इंडिया की उड़ान में जल उठा घर।

एक हादसा, दो हादसे नहीं,
हर ओर हो रही त्रासदी कहीं न कहीं।

कुंभ में भगदड़, मंदिर में हाहाकार,
सड़कें भी लील गईं कितने मासूम परिवार।

नक्सल धमाकों में जवान मिट गए,
माँओं के आँगन सूने पड़ गए।

सांप्रदायिक झगड़े, देशों में युद्ध के बादल,
इंसानियत खोती जा रही है हर कदम पर।

प्रकृति भी अब साथ नहीं निभा रही,
कहीं सूखा, कहीं बारिश कहर ढा रही।

कैसी यह दुनिया है, कैसा यह खेल,
क्यों हम खुद ही बना रहे हैं अपने जीवन को जाल?

अब भी समय है, संभल जाओ,
नफरत के बीज मत बोओ, प्यार फैलाओ।

एक साथ चलें, एक साथ उठें,
दुनिया को बचाएँ, अमन का दीप जलाएँ।

तबाही के इस दौर में,
एक उम्मीद का हाथ बढ़ाओ।

आओ साथ आओ,
दुनिया को बचाओ।


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