By Shruti Mundada
अगर वह आपकी बेईमानी पर भी मुस्कुराए,
तो आग़ाज़ से बड़ा उसका अंजाम बनने चला है।
उम्मीदों पर सभी की खरा उतरकर अपना मतलब भूल जाए,
तो वह एक शख़्स नहीं, पूरी आवाम बनने चला है।
कितने टुकड़ों में बिखरा, कितनी शाखों से टूटा,
कितने कोयलों से निखरा, कितनों ने अपना कहकर लूटा;
चाहे जो भी हो फिर हाल "नेकी कर, दरिया में डाल",
सब कुछ बिसराता जाए, केवल करनी करता जाए
कुछ अनबूझा सा उसका तकिया-कलाम बनने चला है।
अगर वह हर सिपी में बस खुशी के मोती ही भरे,
तो लहरों को समेटकर वह समंदर तमाम बनने चला है।
अपनों की आन बचाने खातिर वह ज़माने से लड़ जाए,
तो वह बाग़ी नहीं, संग्राम बनने चला है।
अनजाने ही बिगड़ी बनाता जाए, रूठों को भी मनाता जाए,
छलनी दिल सबसे छुपाए, क्या मजाल कि एक आँसू बहाए!
ना उसकी कोई रंजिश, ना उसकी कोई बंदिश,
कैद कर भीतर शोक की तपिश, मुख पर सजा स्मितहास्य रजनीश!
अब वह अपनी ही जश्न-ए-आज़ादी का ग़ुलाम बनने चला है।
ख़ुद से बढ़कर अगर वह औरों का दुख-दर्द अपनाए,
तो वह बूढ़ी आँखों का छाँव भरा विश्राम बनने चला है।
शांति जिसकी पहल है, मगर
अगर सेतु भंग हो जाए तो-
तूफ़ानों से लड़ने वह सैलाबों का कोहराम बनने चला है।
छल-कपट जहाँ है फ़ुरक़त, सादगी ही है जिसकी फ़ितरत,
अपने किए पर शर्मिंदा कर दे-ऐसी पाक है जिसकी नीयत!
नियति ने जिसकी राहों में केवल काँटे ही संजोए,
समय आने पर उसने भी तो पुरुषार्थ के बीज हैं बोए।
आपकी सैकड़ों नादानियों को इकट्ठा कर-
ऐवज में जो मिले, वह बेशकीमती इनाम बनने चला है।
सत्य, धर्म, धैर्य और निष्ठा की वह मिसाल बन जाए-
तो संभलिए, साहब,
इस कलियुग में...
वह राम बनने चला है।
वह राम बनने चला है।
वह राम बनने चला है।