By Shriya Nanda

तुम्हें भूल जाने कि कोई वजह कहाँ से लाऊँ,
तुम्हारा नाम जब जब ख्याल में उतरता है, मेरे अंदर मानो इश्क बहुत दुखता है।
तुम गलत थे या मैं, या शायद समय ही धोकेबाज़ ठहरा,
अपने आज को गौर से देखूं तो दूर एक छत सी डली नज़र आती है,
कोई जैसे उसके इर्दगिर्द दीवारें बनाना भूल गया हो।
या शायद छत डालते हुए एक दिन उस मिस्त्री को एहसास हो गया हो कि,
इस घर का बसना नामुमकिन है,
और छोड़ गया वो उस छत को जैसे का तैसा।
एक आधा अधूरा घर…
एक आधा अधूरा इश्क।