By Shreyas Aneja

एक समंदर लेकर चलता हूँ मैं अपने भीतर
जो अपनी गहराई में बहुत कुछ समेटे है।
इसमें तूफ़ान भी चलते हैं,
चाँद भी चमकता है,
बिजली भी कड़कती है,
और सूरज भी ढलता है।
जो रुकती नहीं है, वो है इसकी गति,
जो झुकती नहीं है, वो हैं इसकी लहरें।
मैं कहता हूँ, इस तेज़ लहर में डूब जाएगा सब,
समंदर कहता है—जो गोते मारे, वही तैरे।
मैं फिर भी डरता हूँ इसकी सुनामी से,
क्योंकि ऊँची लहरें आँखों से छलक कर आँसू बन जाती हैं।
फिर मैं रोक नहीं पाता समंदर के इस सैलाब को,
और बन जाने देता हूँ इसे एक आपदा,
जो समंदर की नहीं, मेरी है।