Shor aur Sannata – Delhi Poetry Slam

Shor aur Sannata

By Devansh Dutt

मैं कई सालों से सन्नाटे की तलाश कर रहा हूं..
पर मेरे हाथ आया है तो सिर्फ शोर,
किस्म किस्म का शोर..
मेरी गाड़ी के पहिए अक्सर सन्नाटे की ओर दौड़ पड़ते हैं..
कभी दिन तो कभी रात,
मेरी तलाश यूं ही शुरू हो जाती है..
कभी काम करते-करते,
कभी खाली बैठे-बैठे..
मेरा मन सन्नाटे की ओर खींचता है मुझे।
पर सुना है यह शोर भी ज़रूरी है?
जहां कारखानों का शोर नहीं होता,
वहां शोर भूखे पेटों का होता है..
जहां इंसानों का शोर नहीं होता,
वहां जानवरों का शोर होता है..
किसी ने कहा था कि शोर अच्छा होता है, उससे बैर कैसा?
क्या है कोई ऐसी जगह जहां शोर न हो?
कभी सुना है समंदर की लहरों का शोर?
या पहाड़ों में बहते झरनों का शोर?
ओह पर मैं तो सन्नाटे की तलाश में था !
पर जब कोलाहल के बीच
एक चैन से सोए बच्चे को देखा तो
लगा कि शोर कहीं मुझ ही में तो नहीं?
इन सवालों के शोर में,
मैं कई सालों से सन्नाटे की तलाश कर रहा हूं।।


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