1- ए आताताई ये तो बतला – Delhi Poetry Slam

1- ए आताताई ये तो बतला

By Shobha Joshi

 

 

वो धर्म के ठेकेदार बने
हम ध्वजा पकड़े मानवता की
ऐसे तो ये बतलाओ 
कैसे भला रक्षा होगी मनुजता की 
जागो आँखें खोलो 
वैचारिक निंद्रा का परित्याग करो 
कुछ सभ्य समाज का निर्माण करो
घर तो छोड़ आए हो तुम
उन्नत जीवन की चाहत में
मिश्रित बस्ती में रहते हो 
शहरी जीवन की राहत में 
पर हवा ऐसी ही जहरीली रही तो 
मद में अंध मस्त नशीली रही तो  
एक दिन ऐसा भी आ सकता है
बस्ती से भी करो पलायन जो तुम
ऐसा भी समय तुम्हे दिखा सकता है।
वो धर्म के ठेकेदार नहीं 
वो बस आताताई हैं 
वो धर्म के पैरोकार नहीं 
वो बस उदंडता अनुयायी हैं
धर्म तो उस मालिक संग नाता जोड़ता है 
जिसके बच्चे आपस में सब भाई हैं 
और नई नहीं ये रीत पुरानी चली आई है
फिर एक भाई का कत्लेआम
दूजे का चौपट करके सब काम 
तीसरे के सर पर धर के सब इल्ज़ाम 
खुद कैसे भला वो हुआ इमाम
वो बस अनाचारी अतिचारी है 
जो बस बर्बरता का ही कुविचारी है।
ए आताताई ये तो बतला 
मेरी मोटी बुद्धि को जरा कर पतला
तू इस दुनिया में 
हम जैसा ही तो आया होगा
नौ महीने गर्भ में रख 
अंत असीम प्रसव कष्ट चख
मां ने ही तो तुझ को जाया होगा
नन्ही जान तुझे हाथों में ले बाबा ने तेरे 
खुशी का अनूठा अनुभव पाया होगा 
नन्हे पैरों और तोतली बोली से तूने
घर आंगन खुश गुलज़ार बनाया होगा 
और बचपन भाई बहनों संग तूने 
खेलते कूदते आनंद में ही तो बिताया होगा 
फिर कब कैसे कहां से 
ये अमानवीयता तुझ में समाई
ये बतला ए आताताई ।
प्यास लगे तो
पानी ही तो तुम पीते होगे
भूख से लगे आग पेट में जो
वो गेहूं चावल से ही तो तुम बुझाते होगे
तन ढकने को अपना
कपास ही तो खरीद घर तुम लाते होगे
और छूटते होंगे प्राण जब तन से तो 
चार कंधे बस दे साथ 
इतना ही विचार मन में लाते होगे
फिर कब कैसे कहां से 
ये नृशंसता तुझ में आई
ये बतला ए आताताई ।
सुनते है जीवन से अपने तुम्हे प्यार नहीं
न मौत का खौफ तुम्हे सताता है 
पर मेरे सभ्य समाज में तो ऐसा निर्मोही 
सन्यासी या पीर फकीर बन जाता है
गुफाओं कंदराओं सड़कों गलियों में भटक भटक
जब जीवन का सत्य सार वो पाता है
सत्याचार सदाचार सर्व जन सद्भाव का पक्षी बन जाता
कहीं कोई कुठाराघात न करता 
सारे जग जहान को रोशन करे जो 
वो ऐसी मशाल बन जाता है
वो ऐसी मशाल बन जाता है ।


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