By Shivram Krishnan
तुम आती हो, तो
तुम्हें बस स्टैंड से लाने की
व्याकुलता भी आनंदायक है।
तुम्हारे कमरे को ठीक करना
गर्मी में भी रजाई निकालना
लगता है कुछ तो कर रहा हूँ।
तुम आई
कमरों में हवा की भांति फैल गई
तुम्हारे होने का अहसास
अनायास हो जाता है,
चाय का एक प्याला मिल जाता
चुपके से नाश्ता मिल जाता।
छोटी छोटी बात पर
ख़ुशी से फुदकने का अंदाज़ वही
बिन कारण हंसने का अंदाज़ वही
धीमे गहन बात करने का अंदाज़ वही।
फिर अचानक
बस स्टैंड छोड़ने का वक़्त आ गया
व्याकुलता वही थी, मन भारी था।
घर लौटा तो
तुम्हारे होने के अहसास को ढूंढा
कहीं कुछ छोड़ कर तो नहीं गयी?
वैसे बहुत कुछ है तुम्हारा यहीं
हमेशा कहती हो
अगली बार आऊंगी तो ले जाउंगी।
जानता हूँ आओगी
और हवा की भांति फैल जाओगी।