By Shaurya Singh
उनका अनंत रूप विस्तार चले
जो ना समझे इंकार करे
बस देह सत्य माने प्राणी
वो शिवोहम कैसे स्वीकार करे
बस अभिव्यक्ति मुख से सत्य नहीं
जहां अहम,चित्त,मन ,बुद्धि है
मिले वहां जहां मैं सर्वोच्च
जहां लक्ष्य स्वयं की शुद्धि है
ये विषय वस्तु से बाधित हैं
अध्यात्म से इनकी दूरी है
शिव,राम, कृष्ण में भेद करें
अभी यात्रा इनकी अधूरी है
है सब में ही तो एक बसे
लीला उनकी विपरीत खड़ी
सब अर्थ एक ही कहतीं हैं
प्रेम से ही चेतना गागर भरी
प्रेम अर्थ का ज्ञान नहीं
जो वस्तु से हो जाता है
कान सुने लोचन देखें
जिव्हा से स्वाद भी आता है
तुम्हें मूर्ख भला मैं क्यों न कहूं
क्या यही प्रेम कहलाता है ।
तुम्हें मंजिल का ही ज्ञान नहीं
तुम कार्य की धारा बहाते हो
फिर घाट-घाट पत्थर पहाड़
तुम सबसे ही टकराते हो
सागर तक की है दौड़ नहीं
फिर किस्मत दोषी ठहराते हो
जय,पराजय,जीवन,मृत्यु
क्या जीवन में इसके कुछ पार नहीं ?
हर पल तू गोद में बैठा है
तू शिव है प्राणी कुछ और नहीं
तू नित्य सत्य में रहता है
इस काया का तू गुलाम नहीं
दसावतार सा है प्रकाश तेरा
ब्रह्मांड के हर एक प्राणी में होता है बस संचार तेरा
ये काया तेरा सत्य नहीं
ये आकाश तेरा विस्तार नहीं
ये सूरज तेरा प्रकाश नही
ये मन तेरा है सार नहीं
इनसे ऊंचा अस्तित्व तेरा
तेरे भीतर है वास तेरा
फिर भी राम क्यों जीवन सार नहीं
बस चिदानंद है रूप तेरा
तू शिव है प्राणी कुछ और नहीं