By Shivali Rana
रंगों का सुनते ही मन चहक सा जाए,
बांट दिए गए हैं, फिर भी सब भा जाए।
हर रंग की बात अलग, नाम अलग और अर्थ भी अलग —
यही सुना है मैंने,
फिर भी उनको देखते ही मनोदशा बदल जाए।
परन्तु एक बात तो बताओ —
लाल, नीला, पीला नहीं,
मन के रंगों का भी परिचय करवाओ।
जो किससे बैर और किससे ईर्ष्या —
सब सच बता दे, पर्दा हटा दे,
मन के मैल का भली-भांति पता बता दे।
रंगों को तो बांट ही दिया हमने, परंतु
मन के भावों, मन के रंगों का भी कुछ किया जाए।
वही रंग जो खिलती मुस्कानों के पीछे छिपे हुए —
पर्दा डाले सब देख रहे हैं।
अरे वही रंग जो मन के कोने में छिपे, न जाने कितनी पीड़ा
दिए, केवल बढ़ ही रहे हैं।
मैं कहती हूँ — प्यार, सम्मान व दया के रंगों को बसाओ तुम,
मन होता है मंदिर — इसमें विनम्रता के भजन गाओ तुम।
छोड़ो परे, अरे फेंको परे वो मैल जिसने मन को दूषित
किया है,
चंचलता नामक चिड़िया को दिल में बसाओ तुम।
दुःख-सुख का पहिया तो घूमता,
क्या सही, क्या ग़लत — मन टटोल,
तुम भी दौड़ जाओ अब।
और बात करूँ अगर मैं ठिकाने की तो कह देती हूँ —
निर्मल, शांत और शुद्ध रंगों वाले मन के साथ दूर तक
जाओगे,
रात में चैन से सो पाओगे।
जीवन के मोड़ और पड़ाव में हर एक वस्तु, प्राणी, रचना
प्यारी लगेगी, और तुम
उस दिव्य ज्ञान तक पहुँचने में समर्थ हो जाओगे।
उदय, उन्नति, उदारता के भाव तो पाओगे,
परंतु साथ ही परिवार व रिश्ते भी बेहतरी के मार्ग में
बढ़ जाएँगे।
प्यार पनपेगा, सद्भाव आयेगा,
और जीवन नामक यात्रा और यह मन शांतिपूर्ण हो
जाएगा।
तो मेरे साथ तोड़ो मन के कठोर ताले,
निकालो उन बरतनों को जिनमें ईर्ष्या, क्रोध व अभिमान के
हैं रंग तुमने डाले।
Nice 👍👍👍👍👍👍 bahut achi line’s
Very very beautifully written🤌🏻🫠
A very lovely poem written by a very lovely poetess AkA my elder one . I love the poem as well as you ❤️