ममता का आँचल – Delhi Poetry Slam

ममता का आँचल

By Shivaang Mishra

तपता जब सूरज ऐसे गर्दिश में गुहार लगाई
सीपियों की गोद से ममता बाहर आयी।
तप के मिट्टी लोहा हुई उसके पहले दी ढलाई
भभकती गर्मी की चोट में ममता ने बहार लगाई।

यू तो पौरुष लोहा है अंतिम उचाई पायी
जो मिट्टी पौरुष हुई वह ममता की है परछाई।
बिन तेरे सब मिट्टी है कौन जाने तेरी सच्चाई
यूहि शेर नहीं दहाड़े है ये शेरनी के कोख से है पायी।

कस के डाँटा मुझे हर पल मेरी ही बतलायी
घर्षण पाकर धन्य हुए हम तो तेरे ध्यान से ही पायी।
चतुर क्या जाने तेरी चतुराई जीवन की नींव डलाई
तेरे होठ ने चूमा मुझको तभी तो जीवन में बहार आयी।

मैंने स्वयं को जब टूटते देखा लेकिन तेरी रीढ़ आयी
बोला तूने मुझको ऐसे कोयल भी क्या गा पाई।
धड़कते दिल में जी है तेरा, तू रूप संजीवनी आयी
पकड़ा तूने मुझको ऐसे रोम रोम तू गिन पायी।


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