By Shikha Mishra
जाने मन क्यूँ व्यथित हुआ है,
सहसा आंखें भर आयी,
अंतस तल में ज्वार उठा और,
फिर से मां की याद आयी।।
अंजाने गंतव्य का सफर
माँ के हिस्से है आया,
सच है कि अब मिल न सकेगा
माँ के आंचल का साया,
फिर भी एक उम्मीद की किरण
कुछ रोई, कुछ मुस्काई,
अंतस तल में ज्वार उठा और,
फिर से मां की याद आयी।।
जीवन पथ के दो राहों पर
दुविधाओं ने जब घेरा,
काली स्याह रात के तम से
टूट गया संबल मेरा,
सूरज का उजियारा बनकर
माँ ने ही तब राह दिखाई,
अंतस तल में ज्वार उठा और,
फिर से मां की याद आयी।।
छोड़ गयी, पर छूट न पायी
मां ममता के बंधन से,
किंचित् रही संभाले मुझको
स्नेह, प्रीत, अविलंबन से,
हर पीड़ा, संताप, कष्ट में
बस माँ ने थी बांह फैलायी,
अंतस तल में ज्वार उठा और,
फिर से माँ की याद आयी।।